Ghost Signals from the Deep: 1997 में प्रशांत महासागर से रिकॉर्ड हुई ‘Bloop’ अंडरवॉटर आवाज़, जिसने समुद्री विज्ञान को दशकों तक उलझाए रखा


प्रशांत महासागर पृथ्वी का सबसे विशाल और गहरा महासागर है, जहां आज भी कई प्राकृतिक प्रक्रियाएं पूरी तरह समझ से बाहर हैं। वर्ष 1997 में वैज्ञानिकों ने इसी महासागर की गहराइयों से एक ऐसी अजीब और शक्तिशाली अंडरवॉटर आवाज़ रिकॉर्ड की, जिसे बाद में “Bloop” नाम दिया गया। यह कोई काल्पनिक घटना नहीं थी, बल्कि अमेरिका की National Oceanic and Atmospheric Administration (NOAA) द्वारा दर्ज की गई एक वास्तविक acoustic signature थी। यह आवाज़ इतनी तीव्र और व्यापक थी कि इसे हजारों किलोमीटर दूर स्थित हाइड्रोफोन स्टेशनों ने एक साथ रिकॉर्ड किया। शुरुआती वर्षों में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि यह आवाज़ किस कारण से उत्पन्न हुई, जिससे इसे “Ghost Signals from the Deep” कहा जाने लगा। इस घटना ने समुद्री जीवविज्ञान, भूविज्ञान और ध्वनि विज्ञान—तीनों क्षेत्रों में नई बहस को जन्म दिया और आज भी यह आधुनिक समुद्री शोध के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।


1. Bloop सिग्नल की खोज: 1997 में क्या रिकॉर्ड हुआ था

1997 में NOAA के वैज्ञानिक प्रशांत महासागर में हाइड्रोफोन नेटवर्क के माध्यम से समुद्री गतिविधियों की निगरानी कर रहे थे। यह नेटवर्क मूल रूप से शीत युद्ध के दौरान पनडुब्बियों की आवाज़ पहचानने के लिए विकसित किया गया था, लेकिन बाद में इसे वैज्ञानिक शोध के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। इसी दौरान वैज्ञानिकों ने एक अत्यंत शक्तिशाली, कम-आवृत्ति वाली आवाज़ दर्ज की, जो सामान्य समुद्री ध्वनियों से बिल्कुल अलग थी।

इस आवाज़ की सबसे खास बात यह थी कि इसका स्रोत प्रशांत महासागर के दक्षिणी हिस्से में अनुमानित किया गया, लेकिन इसकी तीव्रता इतनी अधिक थी कि यह आवाज़ अलग-अलग दिशाओं में स्थित कई सेंसरों तक पहुंची। ध्वनि की आवृत्ति और पैटर्न किसी ज्ञात जहाज, पनडुब्बी, भूकंप या सामान्य समुद्री जीव की आवाज़ से मेल नहीं खाते थे।

वैज्ञानिकों ने इस सिग्नल को अस्थायी रूप से “Bloop” नाम दिया, जो केवल एक पहचान थी, न कि किसी प्राणी या घटना का दावा। उस समय उपलब्ध डेटा सीमित था और महासागर की गहराइयों तक सीधे पहुंच संभव नहीं थी। इसी वजह से Bloop को लेकर कई वर्षों तक स्पष्ट निष्कर्ष नहीं निकल पाया।

महत्वपूर्ण बात यह है कि यह रिकॉर्डिंग पूरी तरह प्रामाणिक थी और आधिकारिक वैज्ञानिक डेटाबेस का हिस्सा बनी। यही कारण है कि Bloop को आज भी समुद्री ध्वनि विज्ञान के इतिहास की सबसे चर्चित घटनाओं में गिना जाता है।


2. वैज्ञानिकों की शुरुआती व्याख्याएं और भ्रम

Bloop सिग्नल सामने आने के बाद वैज्ञानिक समुदाय में कई तरह की चर्चाएं शुरू हुईं। कुछ विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि यह किसी बड़े समुद्री जीव से उत्पन्न ध्वनि हो सकती है, क्योंकि आवाज़ की तीव्रता ज्ञात समुद्री जीवों, जैसे व्हेल, से कहीं अधिक थी। हालांकि यह केवल एक परिकल्पना थी, जिसे कभी तथ्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया।

अन्य वैज्ञानिकों ने इसे भूगर्भीय गतिविधि से जोड़ने की कोशिश की। समुद्र तल पर भूकंप, ज्वालामुखीय हलचल और टेक्टोनिक प्लेटों की गति भी कम-आवृत्ति वाली आवाज़ें उत्पन्न कर सकती हैं। लेकिन Bloop की ध्वनि संरचना इन सामान्य घटनाओं से भी पूरी तरह मेल नहीं खाती थी।

इस भ्रम का एक बड़ा कारण यह था कि उस समय महासागर के उस क्षेत्र से विस्तृत दृश्य या भौतिक डेटा उपलब्ध नहीं था। केवल ध्वनि तरंगों के आधार पर निष्कर्ष निकालना सीमित था। मीडिया में भी इस विषय को लेकर अटकलें लगाई गईं, जिससे आम जनता में इसे लेकर रहस्य और बढ़ गया।

हालांकि, वैज्ञानिक संस्थानों ने हमेशा यह स्पष्ट रखा कि जब तक पर्याप्त प्रमाण न हों, तब तक किसी भी असाधारण निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए। यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण आगे चलकर इस रहस्य को सुलझाने में मददगार साबित हुआ।


3. Bloop का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण: Icequake सिद्धांत

2000 के दशक के मध्य तक, जैसे-जैसे अंटार्कटिक और दक्षिणी महासागरों में शोध बढ़ा, वैज्ञानिकों को “icequake” नामक एक प्राकृतिक प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी मिलने लगी। Icequake वह घटना होती है, जब विशाल हिमखंड या ग्लेशियर टूटते हैं, दरारें बनती हैं या बर्फ तेजी से खिसकती है। इस प्रक्रिया में अत्यंत शक्तिशाली ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो पानी के भीतर बहुत दूर तक यात्रा कर सकती हैं।

NOAA के वैज्ञानिकों ने जब Bloop सिग्नल के डेटा की तुलना icequake से उत्पन्न ध्वनियों से की, तो दोनों में उल्लेखनीय समानताएं पाई गईं। आवृत्ति, तीव्रता और ध्वनि का फैलाव—तीनों पहलुओं में मेल देखा गया। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि Bloop किसी अज्ञात जीव या रहस्यमयी स्रोत से नहीं, बल्कि अंटार्कटिक क्षेत्र में बर्फ की विशाल संरचनाओं के टूटने से उत्पन्न हुआ था।

यह स्पष्टीकरण पूरी तरह वैज्ञानिक डेटा पर आधारित था और आज इसे व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। हालांकि, यह तथ्य कि इस निष्कर्ष तक पहुंचने में कई साल लगे, यह दर्शाता है कि महासागरों की गहराइयों में होने वाली प्रक्रियाओं को समझना कितना चुनौतीपूर्ण है।


4. Bloop घटना से विज्ञान को क्या सीख मिली

Bloop की घटना केवल एक ध्वनि रिकॉर्डिंग नहीं थी, बल्कि इसने समुद्री विज्ञान को कई महत्वपूर्ण सबक दिए। सबसे पहला सबक यह था कि महासागर की ध्वनियां कितनी दूर तक और कितनी शक्तिशाली हो सकती हैं। यह समझ पनडुब्बी निगरानी, समुद्री जीव अध्ययन और भूगर्भीय शोध—तीनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई।

दूसरा, इस घटना ने यह दिखाया कि वैज्ञानिक निष्कर्ष समय के साथ विकसित होते हैं। जो चीज़ 1997 में अस्पष्ट थी, वह बाद में नई तकनीक और बेहतर डेटा के साथ स्पष्ट हो सकी। यह विज्ञान की प्रक्रिया की ताकत को दर्शाता है।

तीसरा, Bloop ने जलवायु और ध्रुवीय क्षेत्रों के अध्ययन के महत्व को भी उजागर किया। icequake जैसी घटनाएं सीधे तौर पर बर्फ के पिघलने और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हैं। इस प्रकार, एक अजीब ध्वनि ने वैश्विक पर्यावरणीय प्रक्रियाओं की ओर भी ध्यान खींचा।

आज Bloop को एक “रहस्य” से ज्यादा एक उदाहरण के रूप में देखा जाता है—कि प्रकृति कितनी जटिल है और उसे समझने के लिए धैर्य, डेटा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण कितना जरूरी है।


क्या आपको लगता है कि महासागरों की गहराइयों से जुड़ी ऐसी घटनाएं भविष्य में जलवायु परिवर्तन को समझने में और बड़ी भूमिका निभा सकती हैं?

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